क्या होता अगर फरवरी में 29 तारीख नहीं होती? जानें- हर चार साल बाद लीप ईयर क्यों जरूरी है

कभी सोचा है कि हर चार साल बाद फरवरी में 29 तारीख क्यों आती है? क्या ये एक गलती है या फिर इसके पीछे वाकई कुछ विज्ञान है? दरअसल, दुनिया में जो कुछ भी होता है, उसके पीछे विज्ञान जरूर होता है. हर 4 साल बाद फरवरी में 29 की तारीख इसलिए आती है, ताकि […] The post क्या होता अगर फरवरी में 29 तारीख नहीं होती? जानें- हर चार साल बाद लीप ईयर क्यों जरूरी है appeared first on Nagpur Today : Nagpur News.


Feb 29, 2024 - 12:58
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क्या होता अगर फरवरी में 29 तारीख नहीं होती? जानें- हर चार साल बाद लीप ईयर क्यों जरूरी है

कभी सोचा है कि हर चार साल बाद फरवरी में 29 तारीख क्यों आती है? क्या ये एक गलती है या फिर इसके पीछे वाकई कुछ विज्ञान है? दरअसल, दुनिया में जो कुछ भी होता है, उसके पीछे विज्ञान जरूर होता है. हर 4 साल बाद फरवरी में 29 की तारीख इसलिए आती है, ताकि हमारा कैलेंडर ईयर सोलर ईयर से मेल खा सके. हमारे सौरमंडल में ‘गड़बड़ी’ के कारण हर चार साल में लीप ईयर जरूरी है. वो गड़बड़ी ये है कि आमतौर पर माना जाता है कि पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में 365 दिन का समय लगता है. लेकिन ये सही नहीं है. और इसी को ठीक करने के लिए फरवरी महीने में 29 की तारीख जोड़ी गई.

इस बारे में आगे बढ़े, उससे पहले ये भी जान लेते हैं कि सदियों पहले फरवरी 28 या 29 की नहीं हुआ करती थी. तब फरवरी भी 30 दिन का महीना हुआ करता था. लेकिन रोमन सम्राट सीजर ऑगस्टस के घमंड के कारण ये 28 दिन की हो गई.

फरवरी ऐसे बना सबसे छोटा महीना
इसके लिए इतिहास में जाना होगा. ईसा के जन्म से 46 साल पहले रोमन सम्राट जूलियस सीजर ने नई गणनाओं के आधार पर नया कैलेंडर तैयार किया. इस कैलेंडर में 12 महीने थे.

44 ईसा पूर्व में जूलियस सीजर की हत्या हो गई. उनके सम्मान में कैलेंडर के सातवें महीने का नाम जुलाई रखा गया. जुलाई में 31 दिन हुआ करते थे. जूलियस सीजर के बाद सीजर ऑगस्टस सम्राट बने. उनके नाम पर आठवें महीने का नाम अगस्त पड़ा. अब ऑगस्टस को इस बात से चिढ़ थी कि जूलियस सीजर के नाम पर रखे गए जुलाई महीने में 31 दिन थे, लेकिन उनके नाम पर रखे गए अगस्त महीने में 29 ही दिन हुआ करते थे. ऑगस्टस ने अगस्त को भी जुलाई के बराबर बनाने की ठान ली. और कैलेंडर में बदलाव कर दिया. इस तरह अगस्त महीने में 31 दिन हो गए. और फरवरी में 28 दिन हो गए.

इसलिए बढ़ा हर 4 साल में 1 दिन
रोमन साम्राज्य में कैलेंडर का चलन था. जूलियस सीजर के सम्राट बनने से पहले तक जो कैलेंडर था, उसमें 355 दिन हुआ करते थे. तब सोलर ईयर से कैलेंडर ईयर को मेल करने के लिए हर दो साल में 22 दिन जोड़े जाते थे. लेकिन इससे कई सारी समस्याएं होने लगीं. फिर जूलियस सीजर ने नए सिरे से गणनाएं करवाईं. इसमें सामने आया कि पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 365 दिन 6 घंटे का समय लगता है. इसलिए कैलेंडर को 365 दिन का कर दिया गया. इसके साथ ही जूलियस सीजर ने खगोलशास्त्री सोसिजेनेस को ये अतिरिक्त घंटे का समाधान करने को कहा. उन्होंने सुझाव दिया कि हर चार साल में एक दिन बढ़ा दिया जाए. और इस तरह से हर चार साल बाद 366 दिन का एक कैलेंडर ईयर बना.

आखिरकार ऐसे निकला तोड़
कैलेंडर पर लगातार काम होता रहा. 15वीं सदी में रोमन चर्च के पोप ग्रेगोरी 13वें ने फिर नए सिरे से कैलेंडर पर काम शुरू किया. उन्होंने अपनी गणना में पाया कि पृथ्वी को सूर्य का चक्कर पूरा करने में 365 दिन 6 घंटे का वक्त नहीं लगता है. बल्कि पृथ्वी 365 दिन, 5 घंटे, 46 मिनट और 48 सेकंड में सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है. उन्होंने पाया कि इस वजह से हर 400 साल में समय तीन दिन पीछे हो रहा था. ऐसे में 16वीं सदी आते-आते समय 10 दिन पीछे हो चुका था.

पोप ग्रेगोरी ने इन 10 दिन को एडजस्ट करने के लिए 1582 के कैलेंडर में 10 दिन बढ़ा दिए. उस कैलेंडर में 5 अक्टूबर के बाद सीधे 15 अक्टूबर की तारीख थी. इसे ग्रेगोरियन कैलेंडर नाम दिया गया.

2020, 2024… इन्हीं सालों में क्यों 29 फरवरी
एक साल में 5 घंटे, 46 मिनट और 48 सेकंड को छोड़ देना कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन अगर ऐसा ही सालों तक चलता रहे तो चीजें बहुत गड़बड़ हो सकती हैं. यही कारण है कि हर चार साल में कैलेंडर में एक दिन बढ़ाना जरूरी है. हर चार साल में इन बचे हुए घंटों को एडजस्ट किया गया. पोप ग्रेगोरी 13वें ने पाया था कि हर 400 साल में समय तीन दिन कम हो रहा था. इसलिए उन्होंने सुझाया कि उन सालों में एक दिन बढ़ाया जाए, जो 400 से पूरी तरह डिवाइड हो जाए. इसके बाद हर चार साल में एक दिन बढ़ा दिया जाए. ग्रेगोरी ने साल 1600 के कैलेंडर में एक दिन बढ़ाया था. इसके बाद 1700, 1800 और 1900 के कैलेंडर में फरवरी में 29 तारीख नहीं थी. लेकिन 2000 के कैलेंडर में 29 तारीख थी. अब 2100 का जो कैलेंडर होगा, उसमें भी 29 फरवरी नहीं होगी. लेकिन साल 2400 के कैलेंडर में 29 फरवरी होगी.

इसे ऐसे समझिए कि 1896 के कैलेंडर में तो 29 फरवरी थी. लेकिन 1900 के कैलेंडर में 29 फरवरी की तारीख नहीं थी. इसके बाद सीधे 1904 में 29 फरवरी हुई. इसी तरह से 2096 के कैलेंडर में तो 29 फरवरी होगी, लेकिन 2100 के कैलेंडर में ये तारीख नहीं होगी. 2096 के बाद 2104 के कैलेंडर में फरवरी 29 महीने की होगी.

लीप डे न हो तो क्या होगा?
अगर हर चार साल में लीप डे न जोड़ा जाए तो कई सारी दिक्कतें हो सकतीं हैं. लीप डे इसलिए जरूरी है, क्योंकि ये कैलेंडर ईयर को सोलर ईयर से मैच कर देता है. कैलेंडर ईयर के हिसाब से एक साल 365 दिन में पूरा हो जाता है, जबकि सोलर ईयर के हिसाब से एक साल 365 दिन और लगभग 6 घंटे में पूरा होता है. नासा के मुताबिक, एक साल में 6 घंटे का वक्त बहुत मायने नहीं रखता, लेकिन सालों तक इसे नजरअंदाज बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है. इससे मौसम का सिस्टम तक बदल सकता है. उदाहरण के लिए, किसी जगह पर जुलाई गर्मी का महीना है. अगर लीप ईयर नहीं होता तो कुछ सैकड़ों सालों में जुलाई सर्दी का महीना हो जाएगा.

तो क्या अब सब ठीक है?
पोप ग्रेगोरी 13वें ने जो कैलेंडर तैयार किया था और गणना की थी, ये उसी का नतीजा है कि सदियों बाद भी मौसम का सिस्टम जस का तस बना हुआ है. यानी, अगर 500 साल पहले जुलाई में गर्मी पड़ती थी, तो आज भी गर्मी जुलाई में ही पड़ती है. हालांकि, नेशनल जियोग्राफिक की रिपोर्ट बताती है कि ग्रेगोरियन कैलेंडर भी पूरी तरह से सटीक नहीं है. इस कैलेंडर में भी हर साल 30 सेकंड का बदलाव होता है. लेकिन इससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि हर साल अगर 30 सेकंड का अंतर आ भी रहा है तो भी अगले 33सौ साल में एक दिन से ज्यादा का फर्क नहीं आएगा.

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mayankrajkumarofficial Mayank Rajkumar Sambare, from Nagpur, Maharashtra is a Young Cyber Security Expert, Entrepreneur, Public Speaker, and a Brilliant Author. He Owns a Cyber Security Company Named CODELANCER CYBER SECURITY AND FORENSICS which is located in Nagpur, Maharashtra also the Founder of the Cyber Volunteer Organisation India.